आज की दुनिया में जब हम इंसानों को लगता है कि हमने सैटेलाइट (उपग्रह) और ड्रोन से धरती का चप्पा-चप्पा छान मारा है, तब प्रकृति कहीं दूर किसी घने जंगल में मुस्कुरा रही होती है। वह हमें बताती है कि अभी बहुत कुछ है, जो हमारी नज़रों से ओझल है।
आज की खबर कुछ ऐसी ही है। यह कहानी है एक धोखे की, एक रहस्य की, और एक ऐसी खोज की जो 'आंखों' से नहीं, 'कानों' से हुई है। खबर आई है दक्षिण-पूर्व एशिया के बोर्नियो द्वीप के घने और रहस्यमयी जंगलों से। वैज्ञानिकों की एक टीम ने वहां 'हॉक-कुक्कू' (Hawk-Cuckoo) यानी एक प्रकार की कोयल की पूरी तरह से नई प्रजाति की खोज की है।
इस नई प्रजाति को वैज्ञानिक नाम दिया गया है—Hierococcyx tiganada।
यह खबर अपने आप में बड़ी है। लेकिन मेरे 40 साल के पत्रकारीय जीवन में, मैंने सीखा है कि खबर से ज़्यादा महत्वपूर्ण 'खबर के पीछे की कहानी' होती है। और इस खोज की कहानी विज्ञान की दुनिया में एक नया अध्याय जोड़ती है।
एक ऐसी खोज जो 'आंखों' को धोखा दे गई
हॉक-कुक्कू, जिनका वैज्ञानिक वंश (genus) Hierococcyx है, एशिया के जंगलों में पाई जाने वाली शर्मीली चिड़ियाँ हैं। सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी के डॉ. फ्रैंक रेंड्ट और उनके साथी, इसी वंश की दो पुरानी प्रजातियों पर शोध कर रहे थे:
- लार्ज हॉक-कुक्कू (Hierococcyx sparverioides)
- बॉक्स् हॉक-कुक्कू (Hierococcyx bocki)
ये दोनों प्रजातियां हिमालय से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक के जंगलों में रहती हैं। सदियों से वैज्ञानिक इन्हें इनके रंग-रूप (जिसे विज्ञान की भाषा में plumage कहते हैं) के आधार पर पहचानते आए हैं।
लेकिन यहीं पर प्रकृति ने एक पहेली बिछा रखी थी।
जब वैज्ञानिकों ने बोर्नियो के जंगलों में रहने वाले Hierococcyx bocki (बॉक्स् हॉक-कुक्कू) को देखा, तो वह हूबहू अपने सुमात्रा और मलय प्रायद्वीप में रहने वाले रिश्तेदारों जैसा ही दिखता था। रंग-रूप में इतना मामूली सा फर्क था कि उसे पकड़ पाना लगभग नामुमकिन था। दोनों को देखकर कोई कह ही नहीं सकता था कि ये अलग हो सकते हैं।
अगर विज्ञान सिर्फ 'देखने' पर निर्भर करता, तो यह राज़ कभी नहीं खुलता।
जब 'कानों' ने पकड़ी सच्चाई: तीन शब्दों का जादुई गीत
असली खेल तब शुरू हुआ जब वैज्ञानिकों ने इन पक्षियों को 'सुनना' शुरू किया।
1990 के दशक के बाद से, विज्ञान ने एक नई तकनीक 'बायोअकॉस्टिक्स' (Bioacoustics) यानी 'जैव-ध्वनि विज्ञान' को अपनाना शुरू किया। इसका सीधा सा मतलब है—जीव-जंतुओं की आवाज़ का अध्ययन करके उनकी पहचान करना।
डॉ. रेंड्ट और उनकी टीम ने यही किया। उन्होंने इन पक्षियों की 100 से ज़्यादा आवाज़ों की रिकॉर्डिंग इकट्ठा की और उनका विश्लेषण किया।
और जो नतीजा सामने आया, वह चौंकाने वाला था।
- सुमात्रा और मलेशिया में मिलने वाली Hierococcyx bocki प्रजाति एक खास गीत गाती है, जो दो-शब्दों (two-syllabled) का होता है।
- लेकिन, बोर्नियो के जंगलों में पकड़ी गई आवाज़ें अलग थीं। वहां रहने वाला पक्षी, जो दिखता तो वैसा ही था, वह तीन-शब्दों (three-syllabled) का एक बिल्कुल अलग गीत गा रहा था।
इसका मतलब साफ था। कोयल परिवार (Cuckoo family) के पक्षियों के लिए उनकी आवाज़ ही उनकी असली पहचान होती है। इसी आवाज़ से वे अपने साथी को बुलाते हैं और अपना इलाका तय करते हैं। अगर गीत अलग है, मतलब प्रजाति भी अलग है।
आंखें जिसे एक समझ रही थीं, कानों ने उसे दो साबित कर दिया। इसी तीन-शब्दी आवाज़ के आधार पर इस नई प्रजाति, Hierococcyx tiganada, का जन्म हुआ।
कैसा है यह नया पक्षी और कहाँ है इसका घर?
वैज्ञानिकों ने जब संग्रहालयों में रखे नमूनों (specimens) का फिर से गहन अध्ययन किया, तो उन्हें कुछ और बारीकियाँ भी मिलीं:
- यह नई प्रजाति (H. tiganada) दिखने में H. bocki से लगभग एक जैसी है।
- बस एक मामूली सा फर्क है—नई प्रजाति का ऊपरी हिस्सा (mantle) थोड़ा ज़्यादा स्लेटी (grayer) है, जिस वजह से उसके सिर और पीठ के रंग में ज़्यादा अंतर नहीं दिखता।
- लेकिन इसकी असली पहचान सिर्फ और सिर्फ इसकी तीन-शब्दी पुकार है।
यह पक्षी बोर्नियो के ऊंचे पहाड़ी वर्षावनों (montane rainforests) में, यानी समुद्र तल से 1,000 मीटर (लगभग 3,300 फीट) से ज़्यादा की ऊंचाई पर रहता है।
एक अच्छी खबर: ऊंचे पहाड़ों पर सुरक्षित है इसका घर
आज के समय में जब भी जंगल या किसी नए जीव की बात होती है, तो साथ में एक डर भी आता है—क्या यह सुरक्षित है? बोर्नियो के जंगल पिछले कुछ दशकों में लकड़ी की कटाई (loguging) और उद्योगों के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
लेकिन, इस कहानी में एक सुकून देने वाला मोड़ है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि Hierococcyx tiganada शायद खतरे में नहीं है। इसकी वजह है इसका घर। यह पक्षी जिन ऊंचे, दुर्गम पहाड़ों पर रहता है, वहां तक पहुंचना logging कंपनियों और उद्योगों के लिए बेहद मुश्किल है।
हम कह सकते हैं कि प्रकृति ने अपने इस अनमोल खजाने को अपनी ही गोद में, इंसानी पहुंच से दूर, सुरक्षित रखा है।
यह खोज हमें क्या सिखाती है?
मेरे लिए, यह सिर्फ एक नई चिड़िया के मिलने की खबर नहीं है। यह एक सबक है।
Hierococcyx वंश में पिछली एक सदी (100 से ज़्यादा सालों) में खोजी जाने वाली यह पहली नई प्रजाति है। यह हमें याद दिलाता है कि इस धरती पर अभी भी कितने रहस्य दफन हैं।
यह खोज बताती है कि दुनिया को जानने के लिए सिर्फ 'देखना' काफी नहीं है, 'सुनना' भी ज़रूरी है। कभी-कभी सच्चाई हमारी आंखों के सामने होती है, पर हम उसे पहचान नहीं पाते क्योंकि हम सही सवाल नहीं पूछ रहे होते।
और अंत में, यह बोर्नियो के उन अनमोल जंगलों के महत्व को रेखांकित करता है। न जाने उन घने जंगलों की हरियाली में और कितने ऐसे अनसुने गीत गूंज रहे होंगे, जो किसी वैज्ञानिक के 'कानों' का इंतज़ार कर रहे हैं।
जंगल बोल रहा है, हमें बस ध्यान से सुनने की ज़रूरत है।
